एक हीरे को थी एक जोहरी की तलाश,
जो उससे परखे और अपनी कला से सवारें !
घिरा हुआ था वो समाज की कालिख में,
बुरी कालिख से दबे हुए थे उसके चमकीले किनारे !
उस चमकीले हीरे को तराशने कई जोहरी आये,
खूब कोशिश की तराशने की ,
पर वो कालिख हटा नहीं पाए !
पत्थर समझ फेंक दिया गया , कालिख से भरी खान में,
तराशते रहे दूसरों को उसी की आँखों के सामने !
पूछ बेठा वो अपने खुदा से ,
आखिर, क्यूँ नहीं हटती उस पर से कालिख !
जवाब मिला,
ऊपरी चम्काहट से आते है ,
देख नहीं पाते,
तेरे तेज़ धार किनारे जो है बारीक !
तुझे उठाया जिन हाथों ने ,
कभी तो उनके हाथ चीर गए !
मैंने जो भेजे थे गिने चुने ,
वो दूसरों का हश्र देख पीछे हट गए !
विनम्र होके बोला हिरा ,
मेरा फिर तुमने क्या सोचा है ,
क्या में ऐसे ही कालिख में पड़ा रहूँगा ?
इंतजार कर उभरने का , चमकने का ,
तेरे लिए एक असाधारण सा जोहरी भेजूंगा !
एक दिन आया ,
वापस से उससे किसी ने अपने हाथों में उठाया,
                
उसके आने से कालिख हटी ,
बड़ी सुन्दरता और बदलने लगी उस,
हीरे की काया !
थोडा सा तराशना था बाकी,
इतंजार में बेठे थे उसके साथी हीरे !
शायद किस्मत में ना था उसके चमकना ,
जोहरी को चुरा ले गयी दुनिया की नज़रें !
उस असाधारण जोहरी की ,
हीरे को रहती बेतहा तमन्ना !
दुसरें हीरों की तरह ,
वो हिरा भी चाहता था चमकना !
वापस लौट गया वो उस कालिख में ,
छू ना सके उसे दूसरा कोई जोहरी ताकि !
उस जोहरी के लौटने का सपना ,
और खुद्द को चमकाने की उसमें , बस आस रही बाकी !
जो उससे परखे और अपनी कला से सवारें !
घिरा हुआ था वो समाज की कालिख में,
बुरी कालिख से दबे हुए थे उसके चमकीले किनारे !
उस चमकीले हीरे को तराशने कई जोहरी आये,
खूब कोशिश की तराशने की ,
पर वो कालिख हटा नहीं पाए !
पत्थर समझ फेंक दिया गया , कालिख से भरी खान में,
तराशते रहे दूसरों को उसी की आँखों के सामने !
पूछ बेठा वो अपने खुदा से ,
आखिर, क्यूँ नहीं हटती उस पर से कालिख !
जवाब मिला,
ऊपरी चम्काहट से आते है ,
देख नहीं पाते,
तेरे तेज़ धार किनारे जो है बारीक !
तुझे उठाया जिन हाथों ने ,
कभी तो उनके हाथ चीर गए !
मैंने जो भेजे थे गिने चुने ,
वो दूसरों का हश्र देख पीछे हट गए !
विनम्र होके बोला हिरा ,
मेरा फिर तुमने क्या सोचा है ,
क्या में ऐसे ही कालिख में पड़ा रहूँगा ?
इंतजार कर उभरने का , चमकने का ,
तेरे लिए एक असाधारण सा जोहरी भेजूंगा !
एक दिन आया ,
वापस से उससे किसी ने अपने हाथों में उठाया,
उसके आने से कालिख हटी ,
बड़ी सुन्दरता और बदलने लगी उस,
हीरे की काया !
थोडा सा तराशना था बाकी,
इतंजार में बेठे थे उसके साथी हीरे !
शायद किस्मत में ना था उसके चमकना ,
जोहरी को चुरा ले गयी दुनिया की नज़रें !
उस असाधारण जोहरी की ,
हीरे को रहती बेतहा तमन्ना !
दुसरें हीरों की तरह ,
वो हिरा भी चाहता था चमकना !
वापस लौट गया वो उस कालिख में ,
छू ना सके उसे दूसरा कोई जोहरी ताकि !
उस जोहरी के लौटने का सपना ,
और खुद्द को चमकाने की उसमें , बस आस रही बाकी !

 
 
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