कहते है के "अच्छाईओं के बदले, इस दुनिया में हमेशा गलत ही मिलता है " शायद सही भी है और गलत भी !
"जो होता है अच्छे के लिए होता है " ये भी कुछ हद्द तक सही है और गलत भी ! ये जो है वो ऊपर लिखे शब्द्दो को कुछ हद्द तक समर्थन भी देता है !
दुनिया में हर इन्सान सोचता है के वो जो कर रहा है वो सही है लेकिन ये कभी नहीं सोचता के वो जो कर रहा है वो कितना सही और कितना गलत है ! और अगर किये हुए काम का अंजाम अच्छा निकले तो दूसरी लिखी हुई बात सही हो जाती है और अगर अंजाम गलत हो तो पहली बात सही साबित होती है !
लेकिन इन्सान वास्तव में यह नहीं सोच पाता के उसने जो काम किया , क्या वो वास्तव में सही था ?
कर्म हमारे रहेते हुए भी हम ये नहीं सोच पाते के वो कितने सही होंगे और कितने गलत ! कभी कभी हम गलत होते हुए भी अपना समर्थन खुद्द करते रहेते है और अपने पक्ष को सही साबित करने के लिए किसी भी हद्द या कहे के तर्क तक जा सकते है !
उदहारण के तौर पर :
"आपने कोई गलती की या कहे के आप कही गलत थे , उस गलती ने हो सकता है कईओं का दिल दुखाया हो ! आपको उस गलती का एहसास हुआ और आप अपने गलत होने और उस गलती पे शर्मसार भी हुए ! और उस से आपको एक सही दिशा और सही रास्ते की सोच भी मिली , आपने उस गलती को ना दोहराने का फैसला भी किया, या कहे के उस काम को खुद्द अंतर मन से गलत साबित करते हुए , दोबारा ना करने का फैसला किया ! तब ये कहा जा सकता है के दूसरी पंक्ति शायद सही है के जो हुआ अछे के लिए हुआ , जिसकी वज़ह से आप में ये समझ आई के आप का किया हुआ काम गलत था और उसको अपनी ज़िन्दगी से दूर करके आप ने अपने अंदर उसका एहसास रखा !"
"मेरी ज़िन्दगी में ऐसे कई किस्से और उदहारण रोज़ आते रहेते है, मुझे कई लोग भी मिलते है जो गलत होके उसका कोई पछतावा महसूस नहीं करते और ना ही किये हुए अपने कर्मो को गलत नज़रों से देखना पसंद करते है और ना ही उन्हें यह पसंद होता के कोई उनके बारे में उनसे कुछ कहे ! और जब वक़्त खुद्द उनके अंदर से चीख के पूछता है के आज कहा हो तो जवाब में बोल दिया जाता है के
हमने हमेशा थामे रखा अच्छाईओं का दामन
क्या पाता था के सबब और अंजाम ये होगा,
और दर्द से भर जायेगा ज़िन्दगी का आँगन !
यहाँ आके वो पहली पंक्ति सही हो जाती है के "अच्छाईओं के बदले , गलत ही मिला "!"
अब बात यहाँ देखने वाली ये है के दोनों पंक्तिया कहा तक सही है और गलत ! एक तरफ आपने अपने किये हुए गलत काम का एहसास कर के , सबके सामने उसके लिए शर्मसार होके उस को अपने से दूर किया और दोबारा ना करने से तौबा की , तो यह कई मायनों में सही हो जाता है के चलो जो हुआ अच्छे के लिए हुआ !
दूसरी तरफ आपने जो किया उसका आपको कोई पछतावा नहीं और ना ही आप उसके लिए शर्मसार है और अपने किये हुए काम को सही साबित करने के लिए कुछ भी कर सकते है लेकिन सबके सामने उसको गलत सुन्न , देख और कहे नहीं सकते, वैसा दोबारा न करने की शर्त अपने आप से नहीं लगा सकते ! लेकिन जब खुद्द आपका मन उसके लिए विचलित होता है और आपको फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता तब शायद ये बात बोलने को आ जाती है के "हमारी अच्छाईओं के बदले हमे गलत ही नसीब हुआ " यहाँ ये पंक्ति गलत हो जाती है !
ये पंक्ति सही होती है वहा जैसा के एक उदहारण मेरे पास आया के , "मेरे एक दोस्त ने अपने एक दोस्त की हर तरह से मदद की चाहे स्कूल हो या कॉलेज, घर हो या बाहर , यहाँ तक के उसकी प्रोफेशनल लाइफ में भी , लेकिन जब वो उस से दूर हुआ तो यह उसने भी नहीं सोचा होगा के दोस्ती के लिए उसने जो भी किया उसका परिणाम उसे कुछ दुनिया के बेढंगे तरीकों के साथ दिया जायेगा , जिसकी वज़ह से उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा ! " जब उसने बात सबसे शेयर की तब शायद हर दोस्त हर आदमी जो वहा मौजूद था उन् सबका एक ही तर्क था "के भाई अच्छाई करने निकले थे आज जोह मिला वोह तुम्हारे लिए एक सबक है "
क्या सही है क्या गलत ये कोई इन्सान उसका निर्णय नहीं ले सकता , लेकिन अपने किये हुए कर्मो को खुद्द पहचान के , खुद्द उनका अंतर तर्क करके , वो अमल करने लायक है के नहीं , ये सब जान के इन पंकित्यों पे गोर करे तब कही जाके उसको समझ आएगा के ये दुनिया ये ज़िन्दगी कितना सही देती है और कितना गलत!