Sunday 31 January 2016



जिन्दगी कभी थमेगी नहीं ,
वज़ूद को बनाये रखने के लिए ,
यह जद्दो - जहद कभी रुकेगी  नहीं !

आज हमारा सफ़र यहाँ रुका है ,
बिछड़ेंगे फिर कुछ साथी हमसे,
लेकीन, रास्ता देख रही है हमारा , कुछ राहे नई !

उम्मीद है वापस साथ चलेंगे - दौड़ेंगे,
मिलेंगे फिर, आखिर मंज़िलों को जो पाना है,
हमे मालूम है थके तो साथी तुम भी नहीं !

दिल से दुआ करते है,
तुम्हारे नई दिशा और हर जीत  की,
दुनिया छोटी है मित्रा
मुलाक़ात होती रहेंगी कहीं ना कहीं, कभी ना कभी !... (D Guru...)

Tuesday 8 July 2014

Some Motivational- For Professionals

दोस्तों, भीड़ में सभी चलते है,
खुद को थोड़ा अलग़ कर के  चलना सिखाओ !

चापलूसी तो तरकी पाने के लिए सभी करते है ,
कुछ करो ऐसा के अपना रास्ता खुद बनाओ !

जब कभी बढ़ोगे आगे किसी से ,
कोई ना कोई तुम्हें सतायेगा जरूर !

लेकिन हट रखना अपने वज़ूद और बेबाकी पे ,
जले तो जल जाये सताने वाले का गुरुर !

जो इरादों मे रखते है तुम्हें सताने की चाहत ,
जाते जाते दे जाना उन्हें ख़ामोशी से भरी  मुस्स्कुराहट ! (D Guru...)

Kisi Ko Rukhsat Hote Dekh,Mann Ne Kuch Aisa Likha.....

जवानी में कभी अंजाम सोचा नहीं ,
और आगाज़ का मंन बना डाला  !

मेरी  आखों में उसे डर कभी दिखा नहीं ,
और उसने खुद अपना रास्ता बदल डाला !

कभी  कभी सोचता हूँ दर्द किसमे ज्यादा होता है ,
निफराम होके दफ़न  में या जिन्दगी का बोझा ढोने  मे !

जिन्दगी एक तरफ एक तरफ़ा मज़ा देती है ,
और कभी कभी खून सूखा दे,
ऐसा इम्तहाँ भी  लेती है !

मौत एक बार आती है ,
लेकिन जीवन मे कई बार मात्र छू के ,
अपना साया दिखा जाती है !

सुख तो जीने में है ,
ये बात समझ आती है !

लेकिन सुकून तो  रुखसत होने में है ,
इसलिए मृत्यु जिन्दगी पर हमेशा भारी होती है ! (D Guru...)


Tuesday 15 May 2012

Galat hai per Ehsaas

Ehsaas naam ki kitaab ka ek panna hota hai,
Joh dil ki hasraton aur khawabon ki duniya se,
Ess zindagi mai bebak tareeke se likha jata hai!
Zindagi palat ti raheti hai uss kitaab ka harr ke panna,
Aur ensaan khayali sayahi se bas panne pe likhta jata hai!
Uss PYAAR naam ke ehsaas ko tab tak uss kitaab pe likha jata hai,
Jab tak uss ka rang aab-on-hawa mai fela ho,
Fir ek din bedard tareeke se uss rangeen panne ko faad dia jaata hai!
Kuch saalon baad jab zindagi unn panno ko wapas se palat ti hai,
Woh kitaab toh musskrahat deti hai lekin,
Uss paane ki sayahi aansun bann ke baheti hai!
Hassraton aur khawabon ki duniya ka jab,
Asliyat se koi rishta nahi hota,
Fir kuy yeh jazzbaat ka panna likha jaata hai,
Leke chehre pe jhuti si hansi aur tukade kar ke uss paane ke,
Ensaan ess paak se ehsaas ko Galat kaheta hai!
Kyu ensaan pyaar shabd ko galat kaheta hai....galat kaheta hai.
(D Guru....)

Monday 13 February 2012

"Valentines Day"..... Be Careful

kisi ke saath ki umeed
kisi ke apne hone ke jazbaat
Dil ko rokkna tab hoga mushkil
jab tutenge harr shabd per
Dil ke massum se khawab!

Jab kisi ko na kahena ho mushkil
jab saath dena ho naa mumkin
log aksar kuch aisa bol jaate hai
Dil ki hassrate be-aabroo hoke
lutt jaati hai bina kuch bole,
aur saathi tanha rahe jaate hai akele!

Kuch karo wada ess tarah se,
kisi bechaen dil-rooh ko mile tera aasra
maut se behtar saathi ka saath
aurjeene ka woh lamha kaafi hota hai
Woh pyaar kaisa pyaar jo dena chahe
harr khushi aur khudd chhup chcup ke rota hai!


Doston mere pyaar se maine kuch seekha hai,
Roya tanha mai bhi hoon, tadpa akela mai bhi hoon,
dil unn kimati jazbaaton ki mala hai
joh tutt bhi jaye toh fir se khudd ko bunn leta hai,
dena usse joh eske dard eski khushi ki kare kadrr,
tute dil ka bhoj rahega rooh pe bhari
aur kabhi utarega nahi eski anmol chahat ka karzz!

Thursday 19 January 2012

ये दुनिया ये ज़िन्दगी कितना सही देती है और कितना गलत

कहते है के "अच्छाईओं के बदले, इस दुनिया में हमेशा गलत ही मिलता है " शायद सही भी है और गलत भी !

"जो होता है अच्छे के लिए होता है " ये भी कुछ हद्द तक सही है और गलत भी ! ये जो है वो ऊपर लिखे शब्द्दो को कुछ हद्द तक समर्थन भी देता है !

दुनिया में हर इन्सान सोचता है के वो जो कर रहा है वो सही है लेकिन ये कभी नहीं सोचता के वो जो कर रहा है वो कितना सही और कितना गलत है ! और अगर किये हुए काम का अंजाम अच्छा निकले तो दूसरी लिखी हुई बात सही हो जाती है और अगर अंजाम गलत हो तो पहली बात सही साबित होती है !

लेकिन इन्सान वास्तव में यह नहीं सोच पाता के उसने जो काम किया , क्या वो वास्तव में सही था ? 

कर्म हमारे रहेते हुए भी हम ये नहीं सोच पाते के वो कितने सही होंगे और कितने गलत ! कभी कभी हम गलत होते हुए भी अपना समर्थन खुद्द करते रहेते है और अपने पक्ष को सही साबित करने के लिए किसी भी हद्द या कहे के तर्क तक जा सकते है ! 

उदहारण के तौर पर :

"आपने कोई गलती की या कहे के आप कही गलत थे , उस गलती ने हो सकता है कईओं का दिल दुखाया हो  ! आपको उस गलती का एहसास हुआ और आप अपने गलत होने और उस गलती पे शर्मसार भी हुए ! और उस से आपको एक सही दिशा और सही रास्ते की सोच भी मिली , आपने उस गलती को ना दोहराने का फैसला भी किया, या कहे के उस काम को खुद्द अंतर मन से गलत साबित करते हुए , दोबारा ना करने का फैसला किया ! तब ये कहा जा सकता है के दूसरी पंक्ति शायद सही है  के जो हुआ अछे के लिए हुआ , जिसकी वज़ह से आप में ये समझ आई के आप का किया हुआ काम गलत था और उसको अपनी ज़िन्दगी से दूर करके आप ने अपने अंदर उसका एहसास रखा !" 

"मेरी ज़िन्दगी में ऐसे कई किस्से और उदहारण रोज़ आते रहेते है, मुझे कई लोग भी मिलते है जो गलत होके उसका कोई पछतावा महसूस नहीं करते और ना ही किये हुए अपने कर्मो को गलत नज़रों से देखना पसंद करते है और ना ही उन्हें यह पसंद होता के कोई उनके बारे में उनसे कुछ कहे ! और जब वक़्त खुद्द उनके अंदर से चीख के पूछता है के आज कहा हो तो जवाब में बोल दिया जाता है के 

हमने हमेशा थामे रखा अच्छाईओं का दामन 
क्या पाता था के सबब और अंजाम ये होगा,
और दर्द से भर जायेगा ज़िन्दगी का आँगन !

यहाँ आके वो पहली पंक्ति सही हो जाती है के "अच्छाईओं के बदले , गलत ही मिला "!"

अब बात यहाँ देखने वाली ये है के दोनों पंक्तिया कहा तक सही है और गलत ! एक तरफ आपने अपने किये हुए गलत काम का एहसास कर के , सबके सामने उसके लिए शर्मसार होके उस को अपने से दूर किया और दोबारा ना करने से तौबा की , तो यह कई मायनों में सही हो जाता है के चलो जो हुआ अच्छे के लिए हुआ !

दूसरी तरफ आपने जो किया उसका आपको कोई पछतावा नहीं और ना ही  आप उसके लिए शर्मसार है और अपने किये हुए काम को सही साबित करने के लिए कुछ भी कर सकते है लेकिन सबके सामने उसको गलत सुन्न , देख और कहे नहीं सकते, वैसा दोबारा न करने की शर्त अपने आप से नहीं लगा सकते  ! लेकिन जब खुद्द आपका मन उसके लिए विचलित होता है और आपको फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता तब शायद ये बात बोलने को आ जाती है के "हमारी अच्छाईओं के बदले हमे गलत ही नसीब हुआ " यहाँ ये पंक्ति गलत हो जाती है !

ये पंक्ति सही होती है वहा जैसा के एक उदहारण मेरे पास आया के , "मेरे एक दोस्त ने अपने एक दोस्त की हर तरह से मदद की चाहे स्कूल हो या कॉलेज, घर हो या बाहर , यहाँ तक के उसकी प्रोफेशनल लाइफ में भी , लेकिन जब वो उस से दूर हुआ तो यह उसने भी नहीं सोचा होगा के दोस्ती के लिए उसने जो भी किया उसका परिणाम उसे कुछ दुनिया के बेढंगे तरीकों के साथ दिया जायेगा , जिसकी वज़ह से उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा ! "  जब उसने बात सबसे शेयर की तब शायद हर दोस्त हर आदमी जो वहा मौजूद था उन् सबका एक ही तर्क था "के भाई अच्छाई करने निकले थे आज जोह मिला वोह तुम्हारे लिए एक सबक है

क्या सही है क्या गलत ये कोई इन्सान उसका निर्णय नहीं ले सकता , लेकिन अपने किये हुए कर्मो को खुद्द पहचान के , खुद्द उनका अंतर तर्क करके , वो अमल करने लायक है के नहीं , ये सब जान के इन पंकित्यों पे गोर करे तब कही जाके उसको समझ आएगा के ये दुनिया ये ज़िन्दगी कितना सही देती है और कितना गलत!

 



















Thursday 15 December 2011

सच और झूठ और हम इन्सान

मेरे एक दोस्त ने कुछ दीनो पहले अपने Gmail पे एक लाइन कुछ इस तरह की लिखी :

"Telling a lie and hiding a truth are two different things...."

बात सही है , झूठ बोलना और किसी सच्चाई को छुपाना दोनों बिलकुल अलग अलग सी बात है ! और यह भी एक सच बात है के सच और झूठ दोनों ही कितना भी छुपा लो एक न एक दिन सामने आ ही जाते है !
कुछ लोग झूठ बोल के सोचते है के चलो मुसीबत टली, या सोच लेते है के जब झूठ बोलने से काम हो सकता है तो बोलने में क्या हर्ज़ है !  लेकिन यहाँ भी सोचने वाली बात है के एक झूठ वोह होता है जिस को बोल के आप नेक काम को अंजाम देते है , और दूसरा जब उस झूठ से किसी को दर्द पहुचे या नुक्सान हो !

हम लोग कही न कही , कभी न कभी झूठ हमेशा बोलते है , इन्सान है ना - गलतियों के पुतले है तो ऐसा कोई नहीं जिसने गलती ना की हो और फिर उस गलती के लिए झूठ न बोला हो !

लेकिन जैसा के मेरे दोस्त ने ऊपर लिखा और बोला के झूठ बोलना और सच छुपाना दोनों अलग बात है ! आपने गलती की लेकिन आप उस ग़लती का एहसास करते हुए भी कुछ बोल नहीं सकते, या फिर बोले के आपकी मजबूरी है के आप सच नहीं बोल सकते पर लोग आपको गलत ही कहेंगे , और आप उनकी नज़र में झूठे किस्म के इन्सान होंगे !

और आप पुरे मकसद से सोच समझ के झूठ बोल रहे है ताकि कुछ गलत होने से बचे, वो भी झूठ बोलने में नहीं आता जैसा के श्री कृष्ण ने कहा गीता में :

"किसी की भलाई के लिए सोच समझ के कहा गया झूठ , कोई पाप नहीं  है "

लेकिन, अपनी महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए किसी को नुकसान पहुचाना, आपके बोलने से किसी को जिसने कुछ नहीं किया हो वो सजा का हक़दार बने, यह झूठ पाप है और गलत भी !

मेरी ऊपर की बातों को पढ़ के कुछ लोग अपने ऊपर जरुर लेंगे और जहा जहा उन लोगो को लगेगा, वही कोई न कोई कही हुई बात अपने ऊपर लेकर यह सिद्ध करने की कोशिश करते रहेंगे के :

"उन्होंने भी कोई सचाई किसी से छुपाई नहीं , लेकिन कुछ उनकी मज़बूरी थी जिसके वज़ह से पूरी बात या बोले के सच बोल भी नहीं पाए "

जोह ऐसा सोचते होंगे में उनको एक बात बता दू, सच बोलने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है, क्योंकि सच बोलने का परिणाम सोच के ही इन्सान झूठ बोलने का रास्ता अपनाता है ! इन्सान को लगता है के कही सच बोल दिया तोह उसका बना बनाया काम ना बिगड़ जाए, या कोई उस से दूर न हो जाये , या वो अकेला न हो जाए !
पर यह भी एक सच है के सच का सामना करना और फिर से उस गलती की तरफ ना देखना , जिसके लिए आपको सचे होने का प्रमाण देना पड़ा , वो उस से भी मुश्किल काम है !

लोग गलतियाँ करते है फिर जब लगता है तो झूठ बोलके संभल जाते है या फिर सच तोह बोलते है लेकिन उसका पछतावा न तो उनके जह्हन में आता और नाही आगे के लिए सोचते ! जिंदगी है आगे चलनी है अभी का समय निकलना जरुरी है इसलिए बस उस वक़्त तक के लिए बात जैसे तैसे संभल जाए यही सोचते है !

सच बोलके उस रस्ते पे चलना बहुत मुश्किल काम है इन्सान के लिए !

झूठ बोलना बहुत आसन !

और अपनी भलाई के लिए सच छुपाना चलता है पर दुसरे का नुकसान ना हो, उसके लिए सच पचाना शायद इन्सान के लिए मुश्किल होता है !

कही न कही मेरे दोस्त की कही हुई बात सही लगती है और कही न कही उसका कोई अर्थ निकल के सामने नहीं आता !

लोग दुहाई देते रहेते है के सच बोलने की सजा मिली उन्हें जीवन भर , लेकिन कोई उन्हें यह समझाए के सच बोलने से काम नहीं चलता जीवन भर उस सच के पीछे जो भी वज़ह है उसको महसूस करके उस रास्ते पे नहीं चलना शायद ज्यादा जरुरी है ! जोह वोह कभी कर नहीं पाए , गलतियाँ दोहराई , तब कही झूठ बोला खुद्द से , दूसरों से , या फिर आधा -अधुरा सच बोलके अपने जीवन को संभाला !
जब सच ही आधा अधुरा बोला तो दिल में दीमाग में  उसकी कदर क्या रहेगी , जब दिल से उस सच का एहसास हुआ नहीं तो वो तुम्हे कौनसी ख़ुशी देगा , और तुम ऐसा सच बोलके एस जीवन से , किसी इन्सान से या बोलो के अपने ज़मीर से कैसे उम्मीद कर सकते हो के आपको ख़ुशी मिले !

झूठ बोलना और सच को छुपाना दोनों अलग बात है यह उन् लोगो पर प्रमाणित होती है जिनको एहसास है के उनका झूठ किसी का नुक्सान नहीं होने देगा या उनका सच छुपाना किसी गलत चीज़ को बढ़ावा नहीं देगा और उस सच को छुपाने से किसी का भला ही हो रहा है ! जो यह नहीं सोचते के जिस दिन सच सामने आएगा उस दिन क्या होगा और उन्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा , लेकिन वोह यह बात जानते है के एक दिन उन्हें फक्र से अपनी बात समझाने का मौका भी मिलेगा और लोग उनकी इस गलती पर भी फक्र करेंगे ! उन् से बेशक लोग दो पल के लिए दूर हो जाए लेकिन एक दिन उनकी सचाई सामने आने के बाद सब उनके साथ होंगे !